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इस बिरादरी की शादी में वाद्य यंत्रों का ‘प्रयोग’ है ‘वर्जित’ …

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देहरादून। क्या आपको ऐसी बिरादरी के बारे में जानकारी है जिसमें शादी के रस्मोरिवाज बेहद अनूठे हैं। शादी में दुल्हन के बदले दुल्हन देना, न दे पाने पर शादी के पहले दूल्हे को घरजमाई बनाना, विवाह समारोह में वाद्य यंत्रों का प्रयोग वर्जित होना, महिला के बजाए पुरुष गायन का आयोजन और शगन के तौर पर पैसे के बदले दूध व मक्खन देने की परम्परा बड़ी दिलचस्प है।      

जी हां ! यहां बात हो रही है वन गुर्जरों की। इस बिरादरी में शादी से जुड़े रीतिरिवाज काफी रोचक हैं। वन गुर्जरों में छोटी सी उम्र (5 से 10 वर्ष) में ही लड़के की शादी तय हो जाती है, लेकिन उसमें पारम्परिक नियमों का पालन किया जाना जरूरी है। लड़के की शादी में दुल्हन के बदले दुल्हन का आदान-प्रदान किया जाता है। यानि, वर पक्ष दुल्हन लेने के बदले कन्या पक्ष को भी दुल्हन देते हैं, जिसे ‘साटा-पल्टा’ कहा जाता है। यदि किसी के पास देने के लिए दुल्हन न हो तो फिर दामाद को लड़की के घर शादी से पहले ही घरजमाई बनाकर रखा जाता है। लड़के को 5 से 15 वर्ष तक लड़की के घर पर मवेशियों की देखरेख और उनके लिए चारा पत्ती के इंतजाम की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। जिम्मेदारियों पर खरा उतरने पर ही बाद में उसे दुल्हन सौंपी जाती है। फिर शादी की तिथि निर्धारित होते ही बिरादरी का मुखिया पंचायत बुलाता है और सभी को शादी का आमंत्रण देता है। गुर्जर अपनी भाषा में आमंत्रण दिए जाने को ‘गंढ’ कहते हैं। शादी के दिन बारातियों को दूध और मक्खन साथ में लाना अनिवार्य है। शगन के रूप में रुपये को अहमियत नहीं दी जाती है। समारोह में चावल, घी और बूरा की दावत चलती है। एक और खास बात यह है कि यहां शादी से एक दिन पहले दूल्हा और दुल्हन दोनों के घरों में मेहंदी की रस्म अदा की जाती है। रस्म में महिला नहीं बल्कि पुरुष गायन का आयोजन किया जाता है। पुरुष पूरी रात कान में अंगुली डालकर सूफियाना अंदाज में गाते हैं, जिसे ‘बैंत’ कहा जाता है। पूरे समारोह में किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है।

‘हमारी वन गुर्जर बिरादरी में शादी के रस्मोरिवाज कठिन जरूर हैं, लेकिन उनके पालन से आपसी भाईचारा बढ़ता है और लड़का अथवा लड़की की शादी का बोझा महसूस नहीं होती। मुझे गर्व है कि हमारी बिरादरी के लोग आज भी इन परम्पराओं का निर्वहन कर रहे हैं’।

– फिरोजद्दीन, वन गुर्जर।

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