देहरादून। राज्य सरकार ने जड़ी-बूटी एवं सगन्ध पौधों के कृषिकरण के लिए राजसहायता का पुर्न निर्धारण किया है। अनुदान के मानकों में तबदीली की गई है ताकि किसान को अधिक से अधिक आर्थिक मदद दी जा सके। कृषि, उद्यान व रेशम विकास मंत्री सुबोध उनियाल ने इससे सम्बंधित प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है।
योजना के तहत वर्तमान में 28 प्रजातियों को कृषिकरण पर अनुदान के लिए सम्मिलित किया गया है। इसमें सगन्ध घासें (लैमनग्रास, सिट्रोनला, पामारोजा, खस आदि) डेमस्क गुलाब, जिरेनियम, कालाजीरा, तेजपाल एवं तिमूर, चन्दन, मिन्ट (जापानी मिन्ट को छोड़कर) जैसी प्रजातियां शामिल हैं व कृषिकरण पर लागत का 50 प्रतिशत के समान राजसहायता का प्राविधान है। इस वर्ष से किसानों को दी जाने वाली राज सहायता का पुर्ननिर्धारण कर दिया गया है। अब तक वर्ष 2005 की उत्पादन लागत के अनुसार अनुदान राशि की गणना की जा रही थी। वर्तमान में महँगाई एवं कृषिकरण कार्यों की लागत में वृद्धि को मद्देनजर रखते हुए राजसहायता को निर्धारित किया गया है। उदाहरण के तौर पर सगन्ध घास प्रजाति में पौध संख्या/नाली पर मिलने वाली 550 रुपये राजसहायता को अब 1000 रुपया एवं डेमस्क गुलाब की खेती में पौध संख्या/नाली 200 का मानक 88 पौध संख्या/नाली कर दिया गया है। इसी तरह गुणवत्ता परीक्षण शुल्क पर 50 प्रतिशत छूट का प्राविधान किया गया है। कृषि मंत्री ने निर्देश दिए हैं कि इस योजना से अधिक से अधिक किसानों को जोड़ा जाए। साथ ही पंजीकृत किसानों के मध्य प्रतिवर्ष अलग-अलग किसानों को योजना से आच्छादित किया जाना है। अनुदान की अधिकतम सीमा एक लाख रुपये या 2 हैक्टेयर भूमि पर पौध की लागत, जो भी कम हो, अनुमन्य होगा।
—-Changes in the standard of grant for the cultivation of herbs and aromatic plants, farmers will get more benefits