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वकील न तारीख, फैसला दस रुपए में

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देहरादून। एक मशहूर फिल्मी संवाद है तारीख पर तारीख…। धीमी न्यायिक प्रक्रिया पर चुभती हुई टिप्पणी करने वाले इस संवाद पर सिनेमा हॉलों में खूब तालियां पड़ीं। धारणा है कि अदालतों में न्याय मांगने वाले की चप्पलें घिस जाती हैं। वर्षों बाद उसे तब न्याय मिलता है जब उसका कोई औचित्य नहीं रहा जाता। इन तमाम वजहों से देश की न्याय प्रणाली सवालों के घेरे में है, ऐसे में राह दिखाता है देहरादून का जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर। जहां मात्र दस रूपए में इंसाफ मिलता है। यहां की अदालत में न तो वकील होता है और न तारीखें लगती हैं। दस रूपए फीस और इक्का-दुक्का पेशी में पीड़ित को न्याय मिल जाता है। यह कोई सरकारी व्यवस्था नहीं, बल्कि यहां के लोगों को विरासत में मिली परम्परा है, जिसे ‘खुमड़ी’ कहते हैं। इन लोक अदालतों में दीवानी हो या फौजदारी, सभी मुकदमों की त्वरित सुनवाई होती है और फैसला भी तुरंत होता है। यही वजह है कि क्षेत्र की राजस्व पुलिस चौकियों में नाममात्र के मुकदमे दर्ज हैं। अधिकतर विवाद खुमड़ी में ही सुलझा लिए जाते हैं।

 ‘खुमड़ी’ ब्रिटिशकाल से लागू है। यहां प्रत्येक प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने के लिए प्रत्येक गांव के एक तेज तर्रार और प्रबुद्ध व्यक्ति को मुखिया चुना जाता है, जिसे ‘स्याणा’ कहते हैं। कई गांवों को मिलाकर अलग-अलग समूह बनाए गए हैं जिन्हें ‘खत’ कहा जाता है। प्रत्येक खत में एक-एक स्याणा नियुक्त किया जाता है, जिसे ‘सदर’ स्याणा कहते हैं। सदर स्याणा का ओहदा गांव के स्याणा से बड़ा होता है। काई भी विवाद होने पर पीड़ित व्यक्ति गांव स्याणा के पास दस रुपया नालस (फरियाद शुल्क) जमा करके शिकायत दर्ज कराता है। स्याणा के आदेश पर गांव की खुली बैठक (खुमड़ी) आयोजित होती है। बैठक में स्याणा के साथ ही चार अन्य प्रबुद्ध व्यक्ति यानि पंच, वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों की दलीलें सुनते हैं। अंत में स्याणा फैसला सुनाता है। वादी या प्रतिवादी में किसी को फैसला मान्य न हो तो वह सदर स्याणा की अदालत में न्याय की गुहार लगा सकता है। सदर स्याणा भी दस रुपया नालस लेकर पूरे खत की खुमड़ी बुलाता है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सदर स्याणा का फैसला अंतिम होता है, जिसे मानने के लिए दोनों पक्ष बाध्य होते हैं। कोई भी सदर स्याणा के फैसले का उल्लंघन करता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। कालसी ब्लॉक के ज्येष्ठ प्रमुख भीम सिंह चौहान का कहना है कि मौजूदा न्याय व्यवस्था के बजाए खुमड़ी अच्छी है, जिसमें फैसले शीघ्र हुआ करते हैं। बमटाड़ खत के स्याणा प्रताप सिंह चौहान कहते हैं कि वर्तमान न्याय व्यवस्था धन से प्रभावित है जिसमें निर्धन को न्याय बामुश्किल मिलता है।        —http://jaunsar bawer khumdi nyay vyavastha dehradun uttarakhand

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