3 राज्यसभा सांसद, धामी सरकार में 5 कैबिनेट मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और स्पीकर भी गढ़वाल से तो फिर कैसे हो सकती है क्षेत्र की उपेक्षा ?
-प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता फैलाने को विरोधी भाजपा हाईकमान और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर लगा रहे गढ़वाल मण्डल की उपेक्षा का निराधार आरोप
देहरादून। उत्तराखण्ड में कुछ लोग राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का मंसूबा पाले हुए हैं। उनकी ओर से भाजपा हाईकमान और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर लगातार निराधार आरोप लगाए जा रहे हैं। झूठ, प्रपंच और षड़यंत्र को माध्यम बनाकर वो हर हाल में सरकार को अस्थिर करने के प्रयास कर रहे हैं। साजिश में शामिल लोग क्षेत्रवाद को हवा देकर गढ़वाल की उपेक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि मौजूदा समय में विकास को लेकर गढ़वाल और कुमाऊं मण्डल के बीच गजब का संतुलन बना हुआ है। सरकार और संगठन में प्रतिनिधित्व देखें तो गढ़वाल को कुमाऊं पर तरजीह दी गई है।
उत्तराखण्ड में गढ़वाल और कुमाऊं दो मण्डल हैं। राजनैतिक तौर पर कांग्रेस और भाजपा समेत सभी दल इन मण्डलों के बीच संतुलन बनाकर ही अपनी रणनीति तैयार करते आए हैं। सरकार किसी भी दल की हो अक्सर होता यह है कि मुख्यमंत्री यदि कुमाऊं से हुआ तो सत्ताधारी दल का अध्यक्ष गढ़वाल से होता है। गढ़वाल से मुख्यमंत्री होने पर संगठन के प्रदेश अध्यक्ष पद पर इसी तरह की तवज्जो कुमाऊं को दी जाती है। कैबिनेट में भी दोनों मण्डलों को तकरीबन बराबर प्रतिनिधित्व देकर संतुलन बैठाया जाता है। मौजूदा समय में भी लगभग यही स्थिति है। बावजूद इसके विरोधी तत्व आरोप लगा रहे हैं कि भरतीय जनता पार्टी सरकार और संगठन में कम प्रतिनिधित्व देकर गढ़वाल मण्डल की उपेक्षा कर रही है। आरोप कुछ भी लगाये जाएं लेकिन आंकड़ों से तस्वीर साफ हो जाती है। धामी सरकार में मुख्यमंत्री के अलावा कुल 11 मंत्री बनाए जा सकते हैं। फिलवक्त सरकार में कुल 7 मंत्री हैं जबकि चार पद रिक्त हैं। तीन पद सरकार गठन के वक्त से ही रिक्त रखे गए थे जबकि एक पद कैबिनेट मंत्री चन्दनराम दास के निधन से खाली हुआ है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट में जो 7 मंत्री हैं उनमें से पांच मंत्री सतपाल महाराज, प्रेमचन्द अग्रवाल, धन सिंह रावत, गणेश जोशी और सुबोध उनियाल गढ़वाल मण्डल से हैं, जबकि विधानसभा अध्यक्ष ऋतु भूषण खण्डूड़ी भी गढ़वाल क्षेत्र (कोटद्वार विधानसभा) से ही हैं। पैतृक गांव को आधार बनाएं तो कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा भी गढ़वाल से ही माने जा सकते हैं। पार्टी संगठन की बात करें तो प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट न सिर्फ प्रदेश भाजपा की कमान संभाले हुए हैं बल्कि उन्हें राज्यसभा का सांसद भी बनाया गया है। उनके अलावा, नरेश बंसल (देहरादून) और कल्पना सैनी (रुड़की, हरिद्वार) गढ़वाल मण्डल के ही निवासी हैं जो संसद के उच्च सदन राज्यसभा में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। और तो और
इन आंकड़ों से साफ है कि प्रतिनिधित्व के मामले में गढ़वाल की उपेक्षा का आरोप सरासर बेबुनियाद है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की बात करें तो वह अपने सत्ताधारी दल के विधायकों का बराबर मान, सम्मान और आदर करते हैं यहां तक कि विपक्ष के विधायकों के लिए भी उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। किसी भी विधानसभा क्षेत्र के विकास को लेकर धामी सत्ता पक्ष और विपक्ष का भेद कभी नहीं करते। ऐसा नहीं है कि गढ़वाल और कुमाऊं के बीच सियासी खाई पैदा करने की कोशिश पहली बार हुई है, इससे पहले भी साजिशें रची गईं, जिसका नुकसान राज्य को उठाना पड़ा। लेकिन, जनता अब समझदार हो गई है। इनके गलत इरादों को आम जनमानस भांप चुका है। जनता बहकावे में नहीं आ रही, इसीलिए घटिया राजनीति करने वालों की साजिशें परवान नहीं चढ़ पा रही हैं। इधर, केंद्र सरकार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गढ़वाल मंडल के धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सामरिक महत्व को समझते हुए यहां के विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं। ऋषिकेश–कर्णप्रयाग रेल परियोजना, चारधाम ऑल वेदर रोड, दर्जनों बायपास रोड जैसे कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट गढ़वाल मण्डल के हिस्से में ही आए हैं।