‘आम’ नहीं ‘खास’ की तलाश में है AAP
_ क्या AAP को नहीं दिखती उत्तराखण्डियों में काबिलियत
देहरादून। आम आदमी पार्टी (AAP) उत्तराखण्ड की सियासत में एंट्री के लिए बेकरार है। हर हाल में उसे देवभूमि की सत्ता हासिल हो सके, इसके लिए वो तमाम तरह के तिकड़म भिड़ा रही है। अपने बुनियादी सिद्धांत ताक पर रखकर वो ऐसे ‘खास’ आदमियों की तलाश में है जिनके सहारे सत्ता की सीढ़ी चढ़ी जा सके। और तो और ‘उत्तराखण्ड में भी केजरीवाल’ अभियान चलाकर वो जनता को भ्रमित कर रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ऐलान कर चुके हैं कि उनकी पार्टी अगले दो सालों में 6 राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ेगी। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड भी शामिल हैं। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को मिशन उत्तराखण्ड की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस परिपेक्ष्य में उन्होंने राज्य की सभी 70 विधानसभाओं में एक-एक प्रचार वैन भेजकर ‘उत्तराखण्ड में भी केजरीवाल’ अभियान चलाया है। सवाल यह है कि उत्तराखण्ड मेँ AAP यदि सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो क्या केजरीवाल दिल्ली के सीएम की गद्दी छोड़कर उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री बनेंगे ? AAP का यह अभियान उत्तराखण्ड के लोगों के काबिल होने पर भी सवाल खड़े करता है। क्या उत्तराखण्ड में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं जिसमें मुख्यमंत्री बनने की काबिलियत हो ? साफ है कि AAP सिर्फ ‘खास’ लोगों की पार्टी है ‘आम’ लोगों की नहीं। यह बात दावे के साथ इसलिए भी कही जा सकती है क्योंकि हाल ही में देहरादून आए AAP के उत्तराखण्ड प्रभारी दिनेश मोहनिया ने दावा किया है कि उत्तराखंड सरकार के एक मंत्री और बीजेपी-कांग्रेस के चार विधायक जल्द ही पार्टी में शामिल होंगे। तो फिर क्या AAP अपने आम आदमियों को ही आगे बढ़ाने के अपने मूल सिद्धांत से पीछे हट गई है। क्या उसे अब यह लगने लगा है कि कांग्रेस और भाजपा के स्थापित नेता ही उसकी ताकत बन सकते हैं। क्या दूसरे दलों के बागी और दागियों के बूते ही वो उत्तराखण्ड की सत्ता हासिल करना चाहती है ? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब AAP को जनता के सामने देने होंगे।