बदरीनाथ में भाजपा को भारी पड़ा गलत प्रत्याशी पर दांव लगाना
-जनता ने लोकसभा चुनाव में बेवजह की तोड़फोड़ को मास्टर स्ट्रोक बताने वालों को दिया करारा जवाब
देहरादून। बदरीनाथ और मंगलौर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि अब हवा में राजनीति करने वालों को जनता किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। बदरीनाथ में जनता ने साफ कर दिया कि अब जबरन थोपे गए प्रत्याशियों के जमाने लद गए और मंगलौर ने बता दिया कि यदि चुनाव शिद्दत से लड़ा जाए, तो मुकाबले इस कदर कांटे का सांस रोकने वाला हो सकता है। बदरीनाथ में भाजपा जनता का मिजाज भांपने में विफल रही। लोकसभा चुनाव में ही अंदरखाने बह रही हवा का वो आंकलन नहीं कर पाई और विधानसभा उपचुनाव में गलत प्रत्याशी पर दांव खेलने का खामियाजा हार के रूप में भुगतना पड़ा। जबकि मंगलौर में हार के बावजूद भाजपा के ऐतिहासिक प्रदर्शन ने सभी को चौंका दिया है।
बदरीनाथ के नतीजों ने उन लोगों को भी करारा जवाब दिया है, जो लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी के भाजपा में शामिल होने को मास्टर स्ट्रोक बता रहे थे। ये वही लोग रहे, जिनकी नासमझी के कारण भाजपा को लोकसभा चुनाव में गढ़वाल सीट पर दो लाख वोट का नुकसान उठाना पड़ा। भंडारी के बीच में ही विधानसभा सीट छोड़ने से बदरीनाथ क्षेत्र की जनता ने भी खुद को ठगा हुआ महसूस किया। जिस राजेंद्र भंडारी को उन्होंने चुनाव जीता कर विधानसभा भेजा, वही उन्हें बीच रास्ते में छोड़ गया। उल्टा उन पर एक विधानसभा उपचुनाव का बोझ डाल गया। भंडारी के इस फैसले को लेकर बदरीनाथ क्षेत्र में इस कदर नाराजगी थी कि भंडारी खुद तो भाजपा में आए, लेकिन उनकी एक आवाज पर खड़े रहने वाले लोगों ने उनके साथ आने से साफ मना कर दिया।
भंडारी के खिलाफ इस नाराजगी को भाजपा भी लोकसभा चुनाव में समय रहते समझ गई थी। यही वजह रही जो लोकसभा चुनाव में भंडारी का प्रचार में ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया। भंडारी लोकसभा चुनाव में भी अपनी पकड़ वाले क्षेत्रों में भाजपा को जीत नहीं दिला पाए थे। हालांकि भंडारी को प्रचार से पीछे रखने का लाभ ये मिला कि लोकसभा चुनाव में भाजपा बदरीनाथ सीट पर साढ़े पांच हजार वोट से आगे रही। उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी चयन के मामले में चूक कर गई। भंडारी के खिलाफ जनता में भारी नाराजगी की जानकारी होने के बावजूद उसने क्यों प्रत्याशी चयन में चूक कर दी, ये समझ से परे है। भाजपा कैडर भी भंडारी और भंडारी भी भाजपा कैडर से तालमेल नहीं बैठा पाए।
भाजपा कार्यकर्ता भंडारी के साथ खुल कर इसीलिए नहीं जुड़ पा रहे थे, क्योंकि जिस भंडारी परिवार के भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपाई गली गली पांच साल हल्ला मचाए हुए थे, वे आखिर किस मुंह से उसी भंडारी का गुणगणान कर सकते थे। जहां उन्होंने ऐसा प्रयास किया भी, वहां जनता ने ही उन्हें दौड़ा दिया। राजनीतिक जानकार भी भंडारी की भाजपा में ज्वाइनिंग को लेकर सकते में थे। सभी का तर्क था कि गढ़वाल भाजपा का अभेद दुर्ग रहा है। ऐसे में इस सीट को जीतने को लेकर क्यों इतनी हायतौबा मचाई गई। इसका लाभ होने के बजाय भाजपा को पहले लोकसभा चुनाव में दो लाख वोटों का नुकसान हुआ और अब उसे बदरीनाथ सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा।
क्योंकि भाजपा को लेकर जनता में कोई नाराजगी नहीं है। यदि नाराजगी होती, तो जनता दो महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत से चुनाव न जिताती। उसी जनता ने भाजपा को मंगलौर में लगभग इतिहास रचने के करीब पहुंचा दिया। जिस मंगलौर सीट पर भाजपा हमेशा तीसरे नंबर पर बेहद दयनीय स्थिति में रहती थी, वहां इस चुनाव में भाजपा महज 400 वोटों से ही पीछे रही। भाजपा को पिछली बार 2022 के मुकाबले 2024 के उपचुनाव में दोगुना वोट मिले। इससे साफ है कि जनता में न सरकार और पार्टी संगठन को लेकर कोई नाराजगी रही। नाराजगी रही, तो सिर्फ गलत प्रत्याशी चयन को लेकर।