राजनीति

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने यूं ही नहीं खरीदी गैरसैंण में जमीन, कर्णप्रयाग से लड़ सकते हैं अगला विधानसभा चुनाव !

ख़बर शेयर करें

देहरादून। गैरसैंण को लेकर कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी शह और मात का खेल लम्बे समय से चल रहा है। मौजूदा समय में यह मुकाबला मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच सिमटा हुआ है। इस भावनात्मक मुद्दे पर चल रही लड़ाई में दोनों ओर से ‘ईंट से जवाब पत्थर से’ देने का कोशिशे होती हैं। मुकाबला ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट मैच की तर्ज पर चल रहा है। चूंकि फिलवक्त बल्ला त्रिवेन्द्र के हाथ में है लिहाजा वह गैरसैंण को लेकर स्ट्रोक पर स्ट्रोक मारे जा रहे हैं। अपनी सरकार का कार्यकालू पूरा होने पर वह ‘मास्टर स्ट्रोक’ की तैयारी में हैं। 2022 में त्रिवेन्द्र गैरसैंण यानि कर्णप्रयाग विधानसभा को खुद चुनाव लड़ने के विकल्प के रूप में देख रहे हैं। दिलचस्पत बात है कि उनकी इस सियासी बिसात के सूत्रधार कर्णप्रयाग के मौजूदा विधायक सुरेन्द्र सिंह नेगी बनने जा रहे हैं।

  बीते 4 मार्च को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने गैरसैंण की उत्तराखण्ध्ड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया था। अब उनकी सरकार का महज डेढ़ वर्ष का कार्यकाल शेष है। ऐसे में यह तय है कि इस अवधि में गैरसैंण स्थायी राजधानी नहीं बनने जा रही है। कोरोना कहर की वजह से गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के तौर पर स्थापित करने की ओर त्रिवेन्द्र सरकार आगे कदम नहीं बढ़ा सकी लिहाजा इसका सियासी फायदा उठाने के लिए कांग्रेस बेकरार है। हरीश रावत ध्वजवाहक की भूमिका में रहते हुए गैरसैंण पहुंचकर ‘त्रिवेन्द्र दिदा कख च तुमारी ग्रीष्मकालीन राजधानी’ की धाद लगा चुके हैं। उनकी धाद इतना प्रभावी हुई कि मुख्यमंत्री को स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के दिन न सिर्फ भराड़ीसैंण पहुंचकर ध्वजारोहण करना पड़ा बल्कि दूसरे ही दिन त्रिवेन्द्र ने एक दिलचस्प दांव भी खेला। उन्होंने खुद सार्वजनिक ऐलान किया कि सारकोट (भराड़ीसैंण) में जमीन खरीदकर वह रिवर्स पालन का संदेश दे रहे हैं। ये खबर मीडिया की सुर्खियां बन गई। प्रदेशभर के लोगों ने उनके इस फैसले की सराहना की। लगे हाथ मुख्यमंत्री ने यह भी ऐलान कर दिया कि ‘जेब में व्यवस्था होते ही वह भराड़ीसैंण अपना घर बनायेंगे’। त्रिवेन्द्र के इस दांव से विपक्षी दल कांग्रेस सकते में है। हरीश रावत को भी पलटवार करते नहीं सूझ रहा है। कहा जा रहा है कि गैरसैंण को लेकर त्रिवेन्द्र का यह मास्टर स्ट्रोक है और उनका यह दांव 2022 में भाजपा को चुनावी वैतरणी आसानी से पार करवाने के लिए काफी है। लेकिन त्रिवेन्द्र के रणनीतिकारों ने जो तानाबाना बुन चुकी है उसमें त्रिवेन्द्र के पास अभी तुरूप का इक्का शेष है जिसे वे चुनाव के ऐनवक्त चल सकते हैं। त्रिवेन्द्र अपने प्रबल प्रतिद्वंदी हरीश रावत से ही सीख लेकर भविष्य की रणनीति तैयार कर रहे हैं। कहा जाता है कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत दो-दो विधानसभा सीटों से इसलिए चुनाव हारे क्योंकि उन्होंने खुद के लड़ने के लिए दोनों मैदानी सीटों ही चुनीं। इससे सबके लेते हुए त्रिवेन्द्र चाहते हैं कि वह मैदानी सीट डोईवाला से रिवर्स पालन कर ठेठ पहाड़ी सीट कर्णप्रयाग (जिसके अन्तर्गत गैरसैंण भी है) को अपनी कर्मभूमि बनायें। यही वजह है कि उन्होंने सारकोट में समय रहते जमीन खरीदी और उसमें घर बनाने का ऐलान भी कर दिया। ‘गढ़वालै धै’ को मिली जानकारी के मुताबिक टीम त्रिवेन्द्र कर्णप्रयाग विधानसभा में सक्रिय हो चुकी है। सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ तो आने वाले समय में त्रिवेन्द्र गैरसैंण से चुनाव लड़ने का सार्वजनिक ऐलान कर सकते हैं। योजना बनाई गई है कि इससे पहले गैरसैंण के विकास के लिए ठोस रोडमैप तैयार कर उसे काफी हद तक धरातल पर उतार दिया जाये। सरकारी मशीनरी इस मिशन में जुट गई है। त्रिवेन्द्र के गैरसैंण से लड़ने के दो फायदें होंगे। पहला यह कि गैरसैंण में जमीन खरीदने के उनके रिवर्स पलायन के दावे को बल मिलेगा। दूसरा यह है कि गैरसैंण गढ़वाल और कुमाऊं मण्डल के केन्द्र में स्थित है वहां से मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने का फायदा अन्य सीटों पर भी भाजपा को मिल सकता है। और फिर गैरसैंण भावनात्मक मुद्दा तो है ही। कर्णप्रयाग से त्रिवेन्द्र के चुनाव लड़ने की योजना कितनी जमीनी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि स्थानीय विधायक सुरेन्द्र सिंह नेगी खुलकर कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री यदि अगला चुनाव कर्णप्रयाग से लड़ते हैं तो वह और उनके विधानसभा क्षेत्र की समूची जनता दिलखोलकर उनका स्वागत करेगी और उन्हें रिकोर्ड वोटों से जीत दर्ज कराएगी। नेगी ने कहा कि वह त्रिवेन्द्र के लिए अपनी दावेदारी छोड़ने को सहर्ष तैयार हैं। यदि त्रिवेन्द्र गैरसैंण से चुनाव लड़े तो यह समूचे उत्तराखण्ड की जनभावना का सम्मान होगा।   

Related Articles

Back to top button