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उत्तराखंड: 10 साल में 18 हजार से अधिक लोगों ने स्थाई रूप से छोड़ा टिहरी

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देहरादून. उत्तराखंड (Uttarakhand) में पलायन से न सिर्फ पौड़ी और अल्मोड़ा जैसे जिले जूझ रहे हैं, बल्कि पर्यटन की कई संभावनाएं समेटे टिहरी (Tehri) में भी पलायन की रप्तार बढ़ रही है. पिछले दस सालों में टिहरी की 585 ग्राम सभाओं से 18 हजार से अधिक लोग स्थायी रूप से पलायन (Migration) कर गए, तो 71 हजार से अधिक लोगों ने अस्थायी रूप से टिहरी को अलविदा कह दिया.

पलायन आयोग ने मंगलवार को सीएम हाऊस में आयोजित तीसरी एनुअल मीटिंग में टिहरी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए एक रिपोर्ट पेश की. आयोग के अध्यक्ष के नाते मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस रिपोर्ट का विमोचन किया.आयोग इस साल चमोली, रूद्रप्रयाग और बागेश्वर पर भी ऐसी ही रिपोर्ट तैयार करेगा. इससे पहले आयोग पौड़ी, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिले का सामाजिक और आर्थिक विश्लेषण के साथ ही वहां हुए पलायन की रिपोर्ट भी सरकार को सौंप चुका है.

टिहरी में 2011 के बाद पलायन के चलते 58 गांव गैर आबाद हो गए
रिपोर्ट के अनुसार, टिहरी में 2011 के बाद पलायन के चलते 58 गांव गैर आबाद हो गए. इनमें सबसे अधिक चम्बा, थौलधार ओर जौनपुर विकास खंड हैं. इसके अलावा 71 गांव ऐसे हैं जिनमें जनसंख्या पचास फीसदी से भी कम हो गई. एक बड़ा चौंकाने वाला तथ्य ये भी सामने आया कि 1931 के बाद टिहरी में सत्रह सौ से अधिक गांव गैर आबाद हो गए. इनमें से कई गांवों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया.  प्रदेश के मानव विकास सूचकांक में भी टिहरी जनपद सबसे निचले 13वें पायदान पर है. यहां लैंगिंक विकास सूचकांक की स्थिति भी ठीक नहीं है. लैंगिग विकास सूचकांक में टिहरी सातवें पायदान पर है.

पलायन करने वाले लोगों में अधिकतम युवा हैं


खास बात यह है कि पलायन करने वाले लोगों में अधिकतर युवा हैं, जो शिक्षा और रोजगार के कारण पलायन कर रहे हैं. पलायन करने वालों में चालीस फीसदी युवा 26 से 35 आयु वर्ग के लोग हैं. टिहरी का कीर्तिनगर विकासखंड ऐसा है, जहां पिछले दस सालों में बाहर से आकर भी लोग बसे हैं. पलायन आयोग ने पलायन को रोकने के लिए कुछ सिफारिशें भी की हैं, जिनमें कृषि, उधान, डेयरी एवं पशुपालन, लघु उधोग को बढ़ावा देने के लिए और काम किए जाने की जरूरत बताई गई है.आयोग ने टिहरी बांध झील में मत्सय पालन शुरू करने की भी सिफारिश की है.

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