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अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में स्पीकर अग्रवाल वर्चुअली जुड़े

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देहरादून। 81वां अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (शताब्दी वर्ष) का आयोजन आज लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में वर्चूअल माध्यम से आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में देश भर के विधानसभा के अध्यक्ष सम्मलित हुए। उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल विधानसभा भवन, देहरादून से वर्चुअल माध्यम से इस सम्मेलन से जुड़े।        

कोरोना को देखते हुए पीठासीन अधिकारी सम्मेलन वर्चुअल माध्यम से आयोजित किया गया। सम्मेलन में “प्रभावी और सार्थक लोकतंत्र को बढ़ावा देने में विधायिका‘‘ की भूमिका पर चर्चा की गयी। इस बार के सम्मेलन की थीम ‘विधायिका के कार्यों में आईटी के प्रयोग’ रखी गई।इस सम्मेलन में विधायिका कार्यों में आईटी का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो इस पर विस्तार से चर्चा की गयी।लोकतंत्र को मजबूत करने में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा का रोल कितना सशक्त होना चाहिए और सभा के अधिकारियों की भूमिका कैसी होनी चाहिए, इस पर चर्चा होती है। विधानसभा अध्यक्ष के कंधे पर भी विधानसभा को संचालित करने की बड़ी भूमिका रहती है, ऐसे में इस तरह के सम्मेलन में इनको कैसे प्रभावी किया जा सकता है, पीठासीन अधिकारियों द्वारा चर्चा की गई।          इस अवसर पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 1921 में की गई थी। शताब्दी वर्ष और अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में 81वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन आयोजित किया गया है। उन्होंने कहा कि मंथन से लोकतंत्र के सामने चुनौतियों का सामना करने, संसदीय व विधायी कामकाज को बेहतर बनाने में मिलेगी।        इस अवसर पर उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि लोकतंत्र के चार स्तंभ है विधायिका, कार्यपालिका न्यायपालिका तथा मीडिया। लोकतंत्र की मजबूती के लिए चारों के बीच में सामंजस्य, समन्वय एवं संवाद तथा विश्वास होना बहुत जरूरी है।लोकतंत्र में विधायिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका एक दूसरे के पूरक भी हैं और नियंत्रक भी, इसका अर्थ यह है कि इन तीनों में से यदि कोई कमजोर पड़ रहा है तो शेष उसे शक्ति दे और यदि कोई निरंकुश हो रहा है तो उसे सही दिशा की तरफ मोडा जाए। लोकतंत्र की आत्मा को जीवित रखने के लिए यह जरूरी है कि तीनों एक दूसरे को मजबूत करने के लिए कार्य करें ना कि एक दूसरे को कमजोर करके स्वयं शक्तिशाली होने की प्रतिस्पर्धा में जुट जाएं।        उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि प्रश्नकाल कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है और इसका सदस्यों को अच्छे से उपयोग करना चाहिए।उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा में लगातार 25 से भी अधिक बार तारांकित प्रश्न निश्चित समय अवधि में उत्तरित किए गए हैं। इस अवसर पर राज्यसभा के उपसभापति सहित उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, मिजोरम, आसाम, आंध्र प्रदेश, नागालैंड राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों ने प्रतिभाग किया।वहीं 10 देशों के पीठासीन अधिकारियों ने भी सम्मेलन में प्रतिभाग किया।

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