विरासत में गढ़वाली, कुमांऊनी एवं जौनसारी कलाकारों ने दी शानदार प्रस्तुति

देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल के 12वें दिन की शुरुआत ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। ’विरासत साधना’ कार्यक्रम के अंतर्गत ’विरासत साधना ट्रेजर हंट’ का आयोजन किया गया। जिसमे चार विद्यालय(दून इंटरनेशनल, हिल फाउंडेशन, के वी आई टी बी पी, ओग्रूव) के कुल 40 बच्चो ने प्रतिभाग लिया। ट्रेजर हंट के लिए 15 टीम तयार की गई , जिसमे 3 से 6 बच्चे हर एक टीम में शामिल किए गए। इस खेल में बच्चो को क्लूज की चिट्ठी ढूंढकर संचालक को सारी चिट्ठियां क्रमानुसार देनी थी । इसमें बच्चो को 6 क्लूज ढूंढने थे जो अलग अलग स्टॉल्स में छुपाए गए थे। पहला क्लू टर्न लेफ्ट टुवर्ड्स स्नैक , दूसरा रेड एंड व्हाइट पेंटिंग ,तीसरा यूं नीड टू पुट ऑन योर हेड फॉर गुड नाईट स्लीप, चौथा दिस इस कलरफुल एंड वी यूज इट एवरी दिवाली , पांचवा प्रिंटिंग तकनीक ऑफ कच्छ आखरी फाइंड द पॉटर था। जिसे सबसे पहले दून इंटरनेशनल ग्रुप 1 के बच्चे (अनुष्का सिंह, अनुष्का रावत , श्रेया नौटियाल )ने ढूंढा और पहला स्थान हासिल किया। उसके बाद दूसरा स्थान भी दून इंटरनेशनल के ग्रुप 3 के (क्षितिज मंगल , खुशी कैंतुरा , अश्रेया चंद,अदम्य गुप्ता ,प्रेस्था मेहरा ) के नाम हुआ। ये खेल सरगम, शुषांशु एवं सना द्वारा संचालित एवम तैयार किया गया।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं ब्रम्ह कमल सांस्कृतिक कला संगम देहरादून के मनमोहक लोकनृत्य की प्रस्तुतियां हुई जिसकी शुरुवात उन्होंने गणेश की आराधना (दैन्या होया खोली का गणेशा) से की फिर उसके बाद उन्होंने नंदा देवी का सुंदर प्रदर्शन किया। अगली प्रस्तुति में उन्होंने गढ़वाल के थडिया चोला की दी, उसके बाद उन्होंने कुमाऊं के छपेली का लोकनृत्य का प्रदर्शन किया। जोनसार का हारूल और तांदी देखने का भी दर्शकों को अवसर मिला। अंत में उन्होंने तीनों लोकनृत्य गढ़वाली, कुमाऊं एवं जौनसार’ का विलय कर प्रस्तुति का समापन किया। छपेली उत्तराखंड में किया जाने वाला एक पारंपरिक नृत्य है, यह नृत्य रूप स्थानीय उत्तराखंड जनजाति की संस्कृति पर आधारित है क्योंकि प्रेमी आमतौर पर इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। स्थानीय जनजाति के रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार, किंवदंती के अनुसार, जो जोड़े एक साथ छपेली नृत्य करते हैं, वे हाथ में रंग-बिरंगे कपड़ों और वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य करते हुए अपने रिश्ते को मजबूत करते हैं।
तांडी“ उत्तराखंड का एक लोकप्रिय नृत्य है। इस नृत्य में सभी लोग एक दूसरे का हाथ पकड़कर एक श्रृंखला में नृत्य करते हैं। टांडी नर्तक आमतौर पर पुरुष होते हैं और वे एक सीधी रेखा में खड़े होते हैं और रंगीन वेशभूषा में नृत्य करते हैं। हारूल उत्तराखण्ड के जौनसार बावर के जोनसर जनजाति का इक पारंपरिक लोक नृत्य है जिसका नृत्य का विषय पांडवो की कहानी पर आधारित है। थाडिया चोला नृत्य गढ़वाल की विवाहित लड़कियों द्वारा किया जाता है जो अपने घर अपने विवाह के बाद पहली बार लौटती है , और अपने आंगन में नाचती एवम गाती है। इस प्रस्तुति में राजीव चौहान ( हेड) रवि व्यास व्यास, अंजु बिष्ट ,शिवनी सिंह (गायकी) ,स्वाति जग्गी ,आयुषी रमोला,संगीता चौहान ,ज्योति रावत,संतोष भट्ट, अंकित ,रविन्द्र शाह , नील शाह ( नृत्य) सुरेंद्र कोहली ,संजय नौटियाल, महेश , सौरभ उपाध्याय, ( संगीत) ने मिलकर इस प्रस्तुति को सफल बनाया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में अयान सेनगुप्ता द्वारा सितार वादन कि प्रस्तुति दी गई। जिसमे उन्होंने कार्यक्रम की शुरुवात राग जयजवंती से की। इसके सुंदर प्रतिपादन ने श्रोताओं को मोहित कर दिया। उसके बाद उन्होंने राग हेमंत में प्रस्तुति दी जो की बंगाल लोक का पश्चात भारतीय पारंपरिक संगीत के संयोजन का अनुसरण किया है।
अयान सेनगुप्ता प्रसिद्ध संगीत घराना सेनिया मैहर के शिष्य है एवं पं पार्थ चटर्जी और पं अजय चक्रवर्ती के संरक्षण में है। वे एक आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी के संगीतकार विद्वान हैं, अयान आठ साल की उम्र से संगीत का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने अपने दादा सुबिमल सेनगुप्ता से सीखना शुरू किया और पंडित मणिलाल नाग और पंडित कुशल दास से भी शिक्षा लिया। अयान ने भारत, यूके और बांग्लादेश में विभिन्न संगीत समारोहों में भी प्रदर्शन किया है। वह एक टेलीविज़न शो का भी हिस्सा रहे हैं, जहाँ वह सितारवादक पूरबयान चटर्जी के एक बैंड का हिस्सा थे। वे एक संवेदनशील, गंभीर और मेहनती संगीतकार हैं अयान में जबरदस्त क्षमता है।
सांस्कृतिक कार्यक्रम के आखिरी प्रस्तुतियों में गांधार देशपांडे द्वारा शास्त्रीय गायन कि प्रस्तुति दी गई। जिसमें गांधार जी ने अपनी प्रस्तुति की शुरुवात ग्वालियर घराने से विलंबित तिलवाड़े में एक पारंपरिक बंदिश में राग बिहग के ( इ मां घन घन रे) से की । उसके बाद उन्होंने दोबारा ग्वालियर से द्रुत ताल और तराना की एक पारंपरिक बंदिश प्रस्तुत की ।