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श्रीबदरीनाथधाम की अद्भुत तपस्विनी : परम विदुषी भागवती माई

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देहरादून। श्रीबदरीनाथ को मोक्षधाम भी कहा जाता है। यहां कई तपस्वी वर्षों तक तप करते रहे ताकि विश्व का कल्याण हो सके। मान्यता है कि बदरीनाथ धाम में नर और नारायण पर्वत और सतोपंथ मार्ग के आसपास आज भी कई संत गुफाओं और कंदराओं में जनकल्याण के लिए तपस्यारत हैं। श्री त्रिभुवन चन्द्र उनियाल जी मौजूदा समय में बदरीनाथ धाम के मुख्य धर्माधिकारी हैं। आइये उनकी जुबानी जानते हैं एक ऐसी ही रहस्यमय तपस्विनी परम विदुषी भागवती माई के बारे में –

• वर्ष 1983 में मैं श्री बदरीनाथ धाम में सेवा में नियुक्त हुआ। उस समय प्रथम भेंट मेरी श्रीबदरीनाथ धाम में भागवती माई जी से ही हुई। वह कितने वर्षों से बदरीकाश्रम क्षेत्र में रह रही थी इसका तो मुझे पता नहीं लेकिन वर्ष 1983 से 2003 (शरीर शांत) होने तक वह मेरे पड़ोसी के रूप में रही।

• विलक्षण गुणों से संपन्न भागवती माई तड़के भगवान बदरीनाथ जी के अभिषेक शुरू होने से पूर्व मंदिर पहुंचकरके भगवान को नित्य एक घंटे श्रीमद्भागवत सुनाया करती थी ।।

• वह श्री संप्रदाय की निष्ठावान साध्वी थीं।

• प्रत्येक एकादशी को माई प्रभात 4:00 बजे से लेकर के रात्रि 9:00 बजे पद्मासन में नारद शीला पर बैठ करके भागवत का पारायण करती थीं। खास बात यह है कि प्रात: 4:00 जब वे पद्मासन में बैठती थीं तो सीधा रात्रि 9:00 बजे ही वह पद्मासन से उठकर के अपने कक्ष में आती थीं।

• भगवान के कपाट शीतकाल के लिए जब भी बंद होते थे तो वह कपाट के तुरंत बाद पैदल ही बद्रिकाश्रम से निकल जाती थीं। भले ही कपाट सायं 5:00 बजे बंद हों या 7:00 बजे। कपाट के तुरंत बाद वह पैदल बदरीनाथ से पांडुकेश्वर की ओर निकल पड़ती थी।

• आज भी भागवती माई की गिनती बदरीनाथ धाम के श्रेष्ठ तपस्विओं में की जाती है और उनका चित्र श्री बदरीनाथ मंदिर के संग्रहालय में विराजमान है। ।। जय बदरीविशाल ।।

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