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‘इंडसइंड’ बैंक पर मेहबान हुई त्रिवेन्द्र सरकार

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_ उत्तराखण्ड सहकारी बैंक से बड़े पैमाने पर निजी बैंक में शिफ्ट करवाए जा रहे हैं सरकारी खाते और फण्ड

देहरादून। एक ओर केन्द्र सरकार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को सशक्त बनाने पर जोर दे रही है वहीं दूसरी ओर उत्तराखण्ड में ठीक इसके उलट काम हो रहा है। राज्य में ‘उत्तराखण्ड सहकारी बैंक’ से निजी क्षेत्र के एक बैंक ‘इंडसइंड’ में बड़े पैमाने पर सरकारी फण्ड और त्रिस्तरीय पंचायतों के खाते शिफ्ट करवाए जा रहे हैं। सरकार के इस आदेश से उत्तराखण्ड सहकारी बैंक का समूचा तंत्र डगमगाने लगा है। हैरानी की बात यह है कि निजी क्षेत्र के जिस बैंक पर सरकार मेहरबान है उसकी पूरे प्रदेश में महज 16 शाखाएं हैं, जिससे खाताधारक पंचायतों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी सरकार ने अपने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक से निजी बैंक में करोड़ों का फण्ड और खाते ट्रांसफर करने का निर्णय क्यों लिया, इसे लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।

   उत्तराखण्ड में जिला स्तर पर जिला सहकारी बैंक अपनी 274 शाखाओं और प्रदेश स्तर पर उत्तराखंड राज्य सहकारी बैंक 15 शाखाओं के साथ कार्यरत हैं। इन बैंकों में राज्य की त्रिस्तरीय पंचायतों (ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत) के खाते वर्षों से खोले गए हैं। मौजूदा समय में उत्तराखण्ड में 7791 ग्राम पंचायतें, 95 क्षेत्र पंचायतें एवं 13 जिला पंचायतें वजूद में हैं। केन्द्रीय वित्त, राज्य वित्त एवं अन्य श्रोतों से स्वीकृत करोड़ों की धनराशि उत्तराखण्ड सहकारी बैंक के जरिए ही इन पंचायतों को निर्गत की जाती है। इन मदों से जमा होने वाली करोड़ों की रकम ही उत्तराखण्ड सहकारी बैंक की असल रीढ़ है। अब हो यह रहा है कि त्रिवेन्द्र सरकार के सत्ता में आने के बाद पिछले दो वर्ष से उत्तराखण्ड सहकारी बैंक से त्रिस्तरीय पंचायतों के खाते और फण्ड शिफ्ट किए जा रहे हैं। इस अवधि में अभी तक पंचातयों के लगभग 50 फीसदी खाते निजी बैंक ‘इंडसइंड’ में शिफ्ट किए जा चुके हैं। यानि कुल 289 शाखाओं वाले अपने सहकारी बैंक का काम सरकार ने अब 16 शाखाओं वाले इंडसइंड (निजी) बैंक को सौंप दिया है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि केन्द्र सरकार की निर्देश के अनुसार ग्राम पंचायतों ने ऑनलाईन पेमेण्ट प्रारम्भ कर दिया गया है। चूंकि उत्तराखण्ड सहकारी बैंक तकनीकी रूप से अभी इस कार्य के लिए सक्षम नहीं है इसलिए पंचायतों के खाते तकनीकी रूप से दक्ष इंडसइंड बैंक में शिफ्ट किए जा रहे हैं। हैरानी की बात है कि इंडसइंड बैंक की राज्य में नाममात्र की शाखाएं होने के कारण पेमेंट के मामले में पंचायतों को पहले से अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि केन्द्र ने राज्यों को बैंकों की एक सूची भेजी थी जिसमें 20 बैंकों के नाम शामिल थे। इन बैंकों में से राज्य में तकनीकी रूप में सक्षम और पर्याप्त शाखाओं वाले बैंक (जिनमें एसबीआई और पीएनबी जैसे नेशनलाइज्ड बैंक भी शामिल थे) को यह काम सौंपा जाना चाहिए था लेकिन राज्य सरकार ने उत्तराखण्ड में नाममात्र की शाखाओं वाले इंडसइंड बैंक को यह काम सौंपा। खास बात है कि इंडसइंड बैंक की स्थापना 1994 में हुई और इसका मुख्यालय पुणे में स्थित है।

सचिव को गंवानी पड़ी कुर्सी

देहरादून। राज्य सरकार ने दो साल पहले पंचायतों के बैंक खाते उत्तराखण्ड सहकारी बैंक से निजी बैंक को शिफ्ट करने के निर्देश दिए तो पंचायतीराज विभाग के तत्कालीन सचिव डा. रंजीत सिन्हा ने इससे साफ इंकार कर दिया। कहा तो यह भी जा रहा है कि कुर्सी (विभागीय सचिव) गंवाकर उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।  

‘राज्य के सहकारी बैंक से निजी बैंक को करोड़ों का फण्ड और पंचायतों के खाते शिफ्ट किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। हमने सहकारिता राज्य मंत्री डा. धन सिंह रावत के जरिए सरकार के समक्ष इस पर विरोध दर्ज किया था। यह सरकार का निर्णय है’।

_ दान सिंह रावत, चेयरमैन, उत्तराखण्ड राज्य सहकारी बैंक।

‘केन्द्र सरकार के निर्देश पर सभी पंचायतों से ऑनलाइन भुगतान की व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू करवाई जानी है। इसके लिए उत्तराखण्ड सहकारी बैंक को कहा गया था लेकिन बैंक तकनीकी रूप से सक्षम नहीं हो पाया। हालांकि एक निजी बैंक से टाइअप करके सहकारी बैंक ने कुछ खातों से ऑनलाइन पेमेंट की व्यवस्था की है। शेष खाते ही अन्य बैंक में शिफ्ट किए जा रहे हैं’।

_ हरिचन्द्र सेमवाल, अपर सचिव एंव निदेशक, पंचायतीराज विभाग।

—Trivendra Sarkar agrees on IndusInd Bank 

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