चीन के साथ भारत के रिश्तों में तल्खी के बीच उत्तराखंड से लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा की संवेदनशीलता बढ़ गई है। उत्तराखंड चीन और नेपाल के साथ सैकडों किमी की सीमा साझा करता है। चिंता की बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगते उत्तराखंड के गांवों में पलायन तेजी से बढ़ रहा है। पलायन आयोग के मुताबिक पिछली जनगणना के बाद से अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट वाले उत्तराखंड के 14 गांव पूरी तरह निर्जन हो चुके हैं। सामारिक विशेषज्ञ इस पर चिंता जता रहे हैं।
उत्तराखंड स्थित भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट पलायन की स्थिति जानने के लिए पिछले साल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार परिषद ने उत्तराखंड पलायन आयोग से रिपोर्ट मांगी थी। पलायन आयोग के उपाध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि गत वर्ष सितंबर में नई दिल्ली स्थित परिषद के सचिवालय में आयोजित बैठक में उन्होंने अपनी रिपोर्ट पेश की। बकौल नेगी 2011 की जनगणना के बाद से अब तक चीन सीमा से पांच किमी के दायरे में स्थित चार और नेपाल बॉर्डर से लगते 10 गांव पूरी तरह आबादी विहीन हो गए हैं। यानि अब वहां कोई भी नहीं रहता। जबकि छह गांव ऐसे और थे, जहां इसी दौरान आबादी में 50 प्रतिशत तक कमी आई है। यानि सीमा पर इंसानी बस्तियों के न होने से निगरानी की सारी जिम्मेदारी सिर्फ सेना के कंधों पर आ जाती है।
दूसरी तरफ सामरिक विशेषज्ञ से चिंता की नजर से देख रहे हैं। लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहन भंडारी के मुताबिक किसी भी बॉर्डर पर सेना की तैनाती सिर्फ सामरिक महत्व की पोस्ट पर ही हो सकती है। सरहद की असली निगरानी स्थानीय नागरिक ही करते हैं। स्थानीय लोग सूचना जुटाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। उनके मुताबिक उत्तराखंड में स्थिति गंभीर होती जा रही है, इसलिए सरकारों को सेवानिवृत्त सैनिकों को इन खाली गांवों में बसाने के लिए प्रयास करने होंगे।
इधर, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) जीएस नेगी के मुताबिक स्थानीय आबादी सेना का साजो सामान अग्रिम पोस्ट तक पहुंचाने में भी मदद पहुंचाती है। नेगी, एक और खतरे की तरह आगाह करते हैं कि बॉर्डर के खाली गांव दुश्मन को पनाह देने के काम भी आ सकते हैं। इन गावों में बुनियादी सुविधाएं तो उपलब्ध हैं ही। नेगी ने कहा कि 1962 के चीन युद्ध के बाद उत्तराखंड में ग्रामीणों को एसएसबी के माध्यम से गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया था, मौजूदा स्थिति में बॉर्डर एरिया में इस प्रशिक्षण को फिर बहाल किए जाने की जरूरत है।
नेपाल सीमा पर बदल रही डेमोग्राफी
उत्तराखंड नेपाल के साथ भी अपनी सीमा साझा करता है। पलायन आयोग की पहली रिपोर्ट में ही स्पष्ट किया गया कि नेपाल से सटे पिथौरागढ़ और चंपावत जैसे जिलों में बड़ी संख्या में नेपाली परिवार स्थायी रूप से आकर बस रहे हैं। यूं तो इस क्षेत्र के लोगों के नेपाल के साथ सदियों से रोटी बेटी का रिश्ता है, लेकिन जिस तरह अब नेपाल के रिश्तों में भी तल्खी आ रही है। उससे डेमोग्राफिक बदलाव चिंता का विषय हो सकता है।
खाली गांव (2011 के बाद)
ब्लॉक गांव
कनालीछीना – 01
जोशीमठ – 01
मूनाकोट – 03
मुनस्यारी – 04
चम्पावत – 05