नैनीताल। एनआईटी उत्तराखंड स्थाई व अस्थाई कैंपस विवाद के मामले में उच्च न्यायालय महत्वपूर्ण फैसला सुना दिया है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार के श्रीनगर गढ़वाल के सुमाड़ी में स्थाई कैम्प्स बनाने के निर्णय को निरस्त कर दिया है। साथ ही साफ किया है कि सुमाड़ी में परिसर बनाने को लेकर सरकार फिर से विचार करे।
न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है की दोनों सरकारों ने छात्रों की सुरक्षा को दरकिनार कर यह निर्णय लिया था। अब वह छात्रों की सुरक्षा को केंद्र में रख कर चार माह के भीतर एनआईटी के स्थाई कैम्पस को कहाँ बनाना है इसका निर्णय ले। पूर्व छात्र जसवीर सिंह ने जनहित याचिका दायर कर एनआईटी के छात्रों को राजस्थान शिफ्ट करने के विरोध में जनहित याचिका दायर की थी। कोर्ट ने दोनों सरकारों और एनआईटी प्रशासन को पहली जुलाई 2021 से पूर्व ही अस्थाई कैम्प्स की सभी सुख सुविधाओं को अमल में लाने का सख्त आदेश दिया है। छात्रों की ओर से एनआईटी की छात्रा नीलम राणा, जिसका अस्थाई कैम्प्स के खस्ताहाल के चलते एक्सीडेंट हो गया था और जो आजीवन दिव्यांग हो गई है, उसके पूरे मेडिकल खर्चे के अतिरिक्त उसे 25 लाख रुपया देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने तीन माह के भीतर एनआईटी के लिए फंड जारी करने का आदेश भारत सरकार को दिया है। भारत सरकार के एचआरडी मंत्रालय ने इसके लिए 909 करोड़ की मंजूरी दी है मगर अब तक इसे भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने मंजूरी नहीं दी है। गौरतलब है एन आई टी को फुटबाल बनाने के खेल पर उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद विराम लगने की उम्मीद है। छात्रों के अधिवक्ता अभिजय नेगी के अनुसार यह कई मायने में भारतीय संविधान, कानून के लिए भी एक ऐतिहासिक निर्णय है, क्योंकि कैंपस की लोकेशन सम्बन्धित कोई ऐसा विवाद पहले न्यायालय में नही आया था। इस निर्णय में कोर्ट ने अमेरिकी कानून के पहलूओं पर भी ध्यान दिया है।
—High court: NIT’s permanent campus will not be built in Sumadi, government’s decision revoked