उत्तराखण्ड

केदारनाथ उपचुनाव: धामी के सिर पर ‘ठीकरा’ फोड़ने की थी तैयारी, बंध बया ‘सेहरा’

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देहरादून। उत्तराखण्ड की केदारनाथ विधानसभा के उपचुनाव का क्रेज महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के चुनाव से कतई कम नहीं था। इससे पहले बदरीनाथ और मंगलौर में भाजपा की हार को लेकर मचे घमासान के बाद केदारनाथ सीट को जीतना भाजपा ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रतिष्ठा से जुड़ गया था। केदारनाथ में फ्री हैण्ड मिला तो धामी ने साबित कर दिया कि राजनैतिक कौशल के मामले में उनका कोई सानी नहीं है। प्रचार और प्रबंधन की कमान अपने हाथ में लेकर उन्होंने अंतिम दो दिनों में बाजी पलट दी। बड़े मार्जिन से केदारनाथ में जीत दिलवाकर उन्होंने कांग्रेस के साथ साथ उन विघ्नसंतोषियों को भी पटखनी दे दी जो भाजपा की हार की कामना कर रहे थे।

लोकसभा चुनाव में रामनगरी अयोध्या और फिर बदरीनाथ विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा को अप्रत्याशित हार मिली थी। इसके बाद पूरे देश की निगाहें केदारनाथ विधानसभा के उपचुनाव पर टिकी हुई थीं। केदारनाथ सीट पर भाजपा के हारने का इंतजार उन तमाम विपक्षी दलों को था जिन्हें पार्टी के हिन्दुत्व एजेंडे से एलर्जी है। चूंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बाबा केदारनाथ पर अगाध आस्था है इसलिए भी कुछ विरोधी चाहते थे कि भाजपा किसी भी हाल में उपचुनाव में जीत हासिल न कर सके ताकि मोदी की खिल्ली उड़ाई जा सके। ठीक इसी तरह मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी विरोधियों के निशाने पर हैं। जनसरोकार से जुड़े तमाम धाकड़ निर्णयों से देशभर में भी धामी की लोकप्रियता का विस्तार हुआ है। उनकी बढ़ती धाक से चिढ़ने वाले कुछ विघ्नसंतोषी केदारनाथ सीट पर भाजपा की हार का तानाबाना बुन रहे थे। उन्हें इंतजार था कि भाजपा केदारनाथ सीट हारे और फिर मुख्यमंत्री धामी को अलोकप्रिय बताकर उनके खिलाफ कैंपेन चलाया जाए। एक निगेटिव नेरेटिव बनाया जाए ताकि धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़े। लेकिन विराधियों की हर चाल से वाकिफ धामी जानते थे कि उन्हें हर हाल में केदारनाथ सीट पर जीत का परचम लहराना है। उन्होंने उपचुनाव के प्रचार और प्रबंधन की फुल प्रूफ प्लानिंग की। खुद आक्रामक प्रचार किया। विरोधियों की ओर से चली जा रही हर चाल का तोड़ उनके पास था। चक्रव्यूह में फंसने के बजाए धामी ने अपनी घेराबंदी ही नहीं होने दी।

उपचुनाव में परचम लहराने के लिए उन्होंने पहले से ही खूब मेहनत भी की थी। केदारघाटी के हर क्षेत्र का दौरा किया। उन्होंने ऐसा तब किया, जब झारखंड और महाराष्ट्र में उनके धुंआधार चुनावी दौरों का शिड्यूल था। इतना ही नहीं विधायक शैलारानी रावत के निधन के बाद उन्होंने केदारनाथ क्षेत्र के लिए न सिर्फ 700 करोड़ की विकास योजनाओं घोषणाएं कि बल्कि लगे हाथ उनके शासनादेश भी करवाए। अब जबकि भाजपा केदारनाथ सीट पर तकीबन 5500 वोट से जीत हासिल कर चुकी है तो धामी के विरोधी सकते में हैं। उनके हौसले पस्त हैं। जब हार का ठीकरा धामी के सिर फोड़ने की तैयारी थी तो अब जीत का सेहरा धामी के सिर पर पर ही तो बंधेगा।

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